एकादशी क्या है ? – What is Ekadashi ?
हिंदू पंचांग के अनुसार एक महीने में 30 तिथियां होती हैं और ग्यारहवें दिन पड़ने वाली तिथि को एकादशी ( Ekadashi ) कहते हैं । यह तिथियां दो पक्षों में विभाजित होती हैं । एक पक्ष चंद्रमा और दूसरा पक्ष अमावस्या के अंत से शुरू होकर दूसरे अमावस्या के अंत तक रहता है । जिस दिन अमावस्या होती है उस दिन सूर्य और चंद्रमा का भोगांश बराबर बराबर होता है । जब सूर्य और चंद्रमा के भोगांशो में अंतर बढ़ने लगता है तब यह अंतर महीने की 30 तिथियों को जन्म देता है । तिथि की गणना इस प्रकार से की जाती है –
तिथि = चंद्रमा का भोगांश – सूर्य का भोगांशसूर्य / 12 माह
हर महीने के दो पक्ष होते हैं-
- शुक्ल पक्ष
- कृष्ण पक्ष
उदाहरण के लिए समझे की – मानो की आज रात्रि में चंद्रमा दिखाई नहीं दिया तो आज रात्रि को अमावस्या कहेंगे कल जब चंद्रमा का कुछ हिस्सा आपको दिखाई देगा तो उसे हम प्रतिपदा कहेंगे और अंत में जब चंद्रमा पूर्ण रूप से दिखाई देगा तो उसे हम पूर्णिमा कहेंगे। चंद्रमा के प्रतिदिन बढ़ने कि इस कला को हम चंद्रकला कहते हैं और यही हिस्सा दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाएगा यानी चंद्रकला का बढ़ना ही आहोरात्र कहलाता है।
- शुक्ल पक्ष – पूर्णिमा से शुरू होता है और अमावस पर खत्म होता है –
शुक्ल पक्ष |
पूर्णिमा | पूरनमासी | – |
प्रतिपदा | पड़वा | १ |
द्वितीय | दूज/ दौज | २ |
तृतीय | तीज | ३ |
चतुर्थी | चौथ | ४ |
पंचमी | पांचे | ५ |
षष्ठी | छठ | ६ |
सप्तमी | सातें | ७ |
अष्टमी | आठें | ८ |
नवमी | नौमीं | ९ |
दशमी | दसमी | १० |
एकादशी | ग्यारस | ११ |
द्वादशी | बारस | १२ |
त्रयोदशी | तेरस | १३ |
चतुर्दशी | चौदस | १४ |
अमावस्या | अमावस | कृष्ण पक्ष शुरू |
सनातन धर्म में प्रत्येक पर्व और त्योहार इन्हीं हिंदी तिथियां के अनुसार ही मनाए जाते हैं क्योंकि इसके पीछे एक विशेष कारण होता है । प्रत्येक पर्व और त्योहार के अपने-अपने देवी देवता होते हैं जिनकी पूजा की जाती है और यह स्वाभाविक है की उसी तिथि के अपने देवी देवता अधिपति हो और उसी तिथि में उन देवी देवता की पूजा की जा सकती हो । हम नीचे सारणी में कुछ तिथियों के स्वामी अर्थात अधिपतियों का वर्णन दे रहे हैं –
प्रतिपदा – अग्नयादि देवों का उत्थान सदैव कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा तिथि को होता है। अग्नि से संबंधित सभी पर्व प्रतिपदा तिथि को ही संपन्न किया जाने चाहिए ।
द्वितीय – प्रजापति का व्रत द्वितीया तिथि को होता है ।
तृतीय – इस तिथि की स्वामिनी माता गौरी है और उनका सबसे महत्वपूर्ण व्रत हरितालिका तीज होता है । जो की भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को महिलाओं द्वारा मनाया जाता है ।
चतुर्थी – इस तिथि के स्वामी श्री गणेश जी हैं । गणेश चतुर्थी सदैव हिंदी मास की चतुर्थी तिथि को मनाया जाती है ।
पंचमी – इस तिथि के देवता नाग हैं । श्रावण मास के दोनों पक्ष अर्थात कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की दोनों चतुर्थी को नागो और मनसा यानी नागों की माता की पूजा की जाती है ।
षष्ठी – इस तिथि के स्वामी श्री कार्तिक जी हैं ।
सप्तमी – इस तिथि के स्वामी सूर्य हैं । पूरे विश्व में मनाए जाने वाला सर्वप्रिय त्यौहार छठ पर्व जो की षष्ठी तिथि से आरंभ होता है परंतु इसकी प्रधान पूजा सप्तमी को ही की जाती है ।
सभी एकादशी ( Ekadashi )तिथियों के नाम – All Names of Ekadashi
वर्ष केप्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष मेंआने वालीसभी एकादशी तिथियां के नामनिम्न सारणी में दिए जा रहे हैं–
वैदिक मास | अंग्रेजी माह | पालक देवता | शुक्लपक्ष एकादशी | कृष्णपक्ष एकादशी |
चैत्र | मार्च–अप्रैल | विष्णु | कामदा | वरूथिनी |
वैशाख | अप्रैल–मई | मधुसूदन | मोहिनी | अपरा |
ज्येष्ठ | मई–जून | त्रिविक्रम | निर्जला | योगिनी |
आषाढ़ | जून–जुलाई | वामन | देवशयनी | कामिका |
श्रावण | जुलाई–अगस्त | श्रीधर | पुत्रदा | अजा |
भाद्रपद | अगस्त–सितंबर | हृशीकेश | परिवर्तिनी | इंदिरा |
आश्विन | सितंबर–अक्टूबर | पद्मनाभ | पापांकुशा | रमा |
कार्तिक | अक्टूबर–नवंबर | दामोदर | प्रबोधिनी | उत्पन्ना |
मार्गशीर्ष | नवंबर–दिसम्बर | केशव | मोक्षदा | सफला |
पौष | दिसम्बर-जनवरी | नारायण | पुत्रदा | षटतिला |
माघ | जनवरी–फरवरी | माधव | जया | विजया |
फाल्गुन | फरवरी–मार्च | गोविंद | आमलकी | पापमोचिनी |
अधिक (3 वर्ष में एक बार) | _ | पुरुषोत्तम | पद्मिनी | परमा |
एकादशी व्रत रखने के नियम – Ekadashi vrat rules
यूं तो एकादशी का व्रत कोई भी मनुष्य कर सकता है परंतु यदि आप एकादशी का व्रत करना चाहते हैं तो आपको इसके कुछ नियमों का पालन करना होगा।
- यदि आपने एकादशी का व्रत रखा है तो आपको एकादशी वाले दिन किसी भी प्रकार का मांस,प्याजअर्थात कांदा , मसूर की दाल, चावल या चावल से बने कोई भी खाद्य पदार्थ इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए ।
- एकादशी वाले दिन आपको पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और किसी भी तरह के भोग विलास से सदैव बचके रहना चाहिए।
- एकादशी वाले दिन सुबह आपको किसी भी लकड़ी की दातुन नहीं करनी चाहिए इसकी जगह आप जामुन, आम, नींबू के पत्ते चबा सकते हैं और उंगली से कंठ को साफ सुथरा कर सकते हैं , लेकिन आपको यह बात स्मरण रहे कि किसी भी वृक्ष से आप पता तोड़ नहीं सकते ।आप सिर्फ उन्ही पत्तों का इस्तेमाल करेंगे जो पेड़ से स्वयं गिर गए है । यदि आप ये सब करने में असमर्थ हैं तो आप इसकी जगह स्वच्छ साफ पानी से 12 बार कुल्ला कर सकते हैं ।
- सुबह स्नान आदि करके मंदिर में जाएं और श्रीमद् गीता का पाठ करें या पुरोहित जी से गीतापाठ का श्रवण करें । भगवान श्रीकृष्ण के सामने आप यह प्रण करें कि आप किसी चोर, पाखंडी, लालची, दुराचारी, ईर्ष्यालु व्यक्ति से कोई बात नहीं करेंगे ना ही किसी के बारे में भला बुरा कहेंगेऔर ना ही किसी मनुष्य का हृदय दुखायेंगे। रात के समय जागरण करें और हरि नाम का कीर्तन करें।
- एकादशी वाले दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ‘ इस द्वादश मंत्र का जाप करें और श्री कृष्ण, नारायण, राम, विष्णु, के सहस्रनामों का पाठ करें और भगवान श्री हरि विष्णु का ध्यान करते हुए उनसे प्रार्थना करें कि- ” हे सृष्टि की कर्ताधर्ता हे पालनहार मेरे इस एकादशी व्रत की लाज बनाए रखें और मुझे इस व्रत को और इस प्राण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करें “।
- एकादशी वाले दिन यदि आपने किसी कारणवश किसी लालची, निंदक, पाखंडी, दुराचारी (Corrupt) व्यक्ति से की है तो आपको सूर्य देव के दर्शन करके धूप दीप से श्री हरि विष्णु की पूजा करके उनसे क्षमा मांगनी चाहिए।
- एकादशी वाले दिन घर में झाड़ू लगाना निषेध है क्योंकि झाड़ू लगाने सेकोई चींटी अथवा किसी अन्य सूक्ष्म जीव की हत्या होने का डर रहता है।
- एकादशी वाले दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए और ना ही अधिक बोलना चाहिए क्योंकि अधिक बोलने से मुख से कुछ ऐसे शब्द निकल जाते हैं जो आपको कतई नहीं बोलनी चाहिए ।
एकादशी वाले दिन क्या करें – Ekadashi spiritual practices
एकादशी वाले दिन मनुष्य को अपनी सामर्थ के अनुसार दान करना चाहिए परंतु स्मरण रहे कि किसी अन्य का दिया हुआ कोई भी दान या अन्न ग्रहण न करें ।
यदि आप फलाहारी है तो एकादशी वाले दिन गाजर, शलजम, गोभी, पलक, फुल्का का साग,आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
फलाहारी व्यक्ति कोअथवा व्रती प्रति को कला ,आम , अंगूर, पिस्ता , बादाम, का सेवन करना चाहिए परंतु यह स्मरण रहे किसी भी वस्तु का भोग लगाने से पहले आपको सर्वप्रथम भोग श्री हरि को लगाना चाहिए । साथ ही तुलसी दल भी रखना चाहिए परंतु जबआप भोग लगाने के बाद जब इस प्रसाद को ग्रहण करें तो ध्यान दें की तुलसी दल को ग्रहण नहीं करना चाहिए ।
एकादशी के अगले दिन अर्थात द्वादशी वाले दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान और दक्षिणा भेंट करनी चाहिए ।