गंगा स्नान -Ganga Snan से जुडी रोचक कहानी –
Ganga Snan (गंगा स्नान) -एक समय की बात है की भगवान शिवजी और माता पार्वती एक साथ हरिद्वार भ्रमण कर रहे थे। माता पार्वती जी ने देखा कि हजारों की संख्यां में मनुष्य गंगा स्नान ( Ganga Snan ) करते हुए जोर जोर से “हर-हर गंगे” बोलते हुए गोते लगाये जा रहे हैं परंतु प्राय: सभी मनुष्य दीन- दुखी और पाप परायण हैं। ये देख कर माता पार्वती जी ने बड़े आश्चर्य से भगवान शिवजी से पूछा कि “हे देवादिदेव ! इन मनुष्यों ने न जाने कितनी बार गंगा में स्नान किया है गंगा माँ के जयकारे भी लगायें है परन्तु इन मनुष्यों का कोई पाप कम क्यों नही हुआ और न ही इनका कोई दुःख दर्द कम हुआ है ? तो क्या कलयुग आते आते गंगा में सामर्थ्य नहीं रहा ?”
माता पार्वती के ये शब्द सुन कर भगवान शिवजी ने कहा, ” हे प्रिये! आप बहुत भोली हैं सुनो , गंगा में तो वही सामर्थ्य है जो युगों युगों से है किन्तु इनमे से किसी भी मनुष्य ने गंगा में स्नान ही नही किया है , तो इन्हें गंगा स्नान का लाभ कैसे प्राप्त हो सकता है ?”
माता पार्वती जी ने बड़े ही आश्चर्य से भगवान शिव से कहा कि – ” स्नान नही किया , स्नान कैसे नहीं किया प्रभु ? सभी तो नहा-नहा कर आ रहे हैं ? और ये देखिये इनके शरीर भी अभी तक नही सूखे अभी भी जल में भीगे हुए हैं ।”
भगवान शिवजी ने कहा, ” हे देवी ! ये सभी मनुष्य जल में सिर्फ डुबकी लगा लगा कर आ रहे हैं , गंगा स्नान तो एक ने भी नही किआ। तुम्हें अगर इसका रहस्य जानना है तो कल समझाऊंगा।“
अगले दिन बड़ी जोर शोर से बरसात होने लगी शहर की गलियां कीचड़ से भर गईं। वहीँ पास के एक चौड़े रास्ते में एक गहरा और चौडा गड्ढा था उसके चारों ओर लपटीला कीचड़ भरा हुआ था।
भगवान शिव ने अपनी लीला दिखाना आरंभ किया और एक वृद्ध के रूप में खुद को धारण कर लिया और एक लाचार मनुष्य की तरह उस चौड़े गड्ढे में जाकर ऐसे गिर गए जैसे कि मानो कोई चलता फिरता मनुष्य अचानक से गड्ढे में गिर गया हो और निकलने के लिए भर्षक प्रयास कर रहा हो परंतु अपने प्रयासों के बावजूद उस गड्ढे से निकल ना पा रहा हो।
माता पार्वती जी को भगवान शिव ने यह समझाते हुए उस गड्ढे के पास बैठा दिया की ” देखो देवी , इस राह से गुजरते हुए सभी मनुष्यों से यह कह कर पुकारना की है पुण्य आत्माओं मेरे वृद्ध पति अचानक से इस गड्ढे में गिर गए हैं , कृपया करके उनके प्राण बचा लीजिए और मुझ असहाय अबला नारी की सहायता कीजिए ” । भगवान शिव नेआगे कहा की ” देखो देवी अगर कोई मनुष्य मुझे इस गड्ढे में से निकालने को तैयार हो भी जाए तो तुम उससे यह बात जरूर कह देना कि – देखो मेरे पति सर्वदा निष्पाप है इन्हें वही मनुष्य छू सकता है जो स्वयं निष्पाप हो यदि आप निष्पाप हैं तो ही इनको हाथ लगायें अन्यथा आप जलकर भस्म हो जाएंगे “।
माता पार्वती तथास्तु कहकर उस गड्ढे के किनारे जाकर बैठ गई और आने जाने वाले सभी मनुष्यों को भगवान शिव की बताई हुई बातों के अनुसार आवाज लगाते हुए मदद की गुहार लगाने लगी । यूं तो उस रास्ते से गंगा स्नान कर के मनुष्यों के अनेकों दल गुजर रहे थे परंतु कोई भी उस वृद्ध व्यक्ति की मदद करने के लिए तैयार नहीं था। गंगा स्नान करके आ रहे कुछ मनुष्यों को सुंदर युवती को देखकर मन में कामुकता जागने लगी तो कुछ मनुष्यों के मन में पाप आने लगा , कुछ मनुष्य लोक लाज से डरे तो कुछ मनुष्यों को धर्म का डर हुआ। गंगा स्नान करके आने वाले कुछ मनुष्यों में तो इतना तक कह दिया ” हे सुंदरी मरने दे इस बुड्ढे को क्यों इसके लिए रो रही है तू इतनी सुंदर है सुशील है तुझे तो कोई भी नवयुवक पसंद कर लेगा “। कुछ दयालु प्रवृत्ति के मनुष्यों ने उस वृद्ध की गड्ढे में से निकालने के लिए मदद करनी चाही परंतु उस स्त्री की बात सुनकर वह मनुष्य भी रुक गए और सोचने लगे कि हम गंगा स्नान जरूर करके आए हैं परंतु पाप तो हमने किया ही है क्या पता अगर इस स्त्री की बात सत्य हुई और हम जलकर भाषण हो गए तो। इस तरह किसी का भी साहस नहीं हुआ कि उस वृद्ध की कोई मदद कर सके। संध्या का समय हो चुका था , भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा ” हे देवी , देखा आपने कोई भी मनुष्य सच्चे हृदय से और श्रद्धा से गंगा स्नान करके नहीं आया सिर्फ जल में गोते लगाकर ही आए हैं “। माता पार्वती को ये जान कर बहुत दुःख हुआ ।
थोड़े से समय के बाद एक जवान मनुष्य हाथ में एक लोटा लिए हर-हर गंगे का जाप करता हुआ उस राह से निकला तो उस स्त्री ने उससे भी वही गुहार लगाई तो युवक का हृदय दया से भर गया और उसने उस वृद्ध की गड्ढे से निकालने की तैयारी करने लगा । उस स्त्री ने उसे रोकते हुए कहा ” देखो भाई ,मेरी बात ध्यान से सुनो – यदि तुम निष्पाप हो तभी मेरे पति को हाथ लगा सकते हो अन्यथा अगर आपने मेरे पति को हाथ लगाया तो आप यही जलकर भस्म हो जाओगे ” ।
उस मनुष्य ने उसी क्षण बिना किसी संकोच के स्त्री से कहा की – ” है माता में पूर्ण रूप से निष्पाप ही हूं , आपने शायद देखा नहीं कि मैं गंगा में स्नान करके आया हूं और भला गंगा में स्नान करने के बाद कोई पापी कैसे रह सकता है , मां गंगा तो सबके पाप हर लेती है तो मैं कैसे पापी हो सकता हूं “। युवक ने यह कहते हुए वृद्ध की मदद करने के लिए वृद्ध की तरफ अपने हाथ बढ़ाएं और उस वृद्ध को गड्ढे से बाहर निकाल लिया। भगवान शिव और माता पार्वती ने उसे दर्शनों का अधिकारी समझते हुए उसे अपने पूर्ण रूप में दर्शन दिए और उसको कृतार्थ किया। तब भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा की – ” देखा देवी इतने मनुष्यों में से केवल एक ही मनुष्य ऐसा है जिसने पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ गंगा में स्नान किया है बाकी तो सिर्फ जल में डुबकी लगाकर आए हैं “।
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निष्कर्ष– जो मनुष्य बिना श्रद्धा और विश्वास के गंगा में स्नान करता है या सिर्फ दिखावे के लिए करता है उसे कभी गंगा स्नान का वास्तविक फल नहीं मिलता परन्तु इसक अर्थ यह कतई नहीं है की गंगा स्नान करना व्यर्थ हो गया । गंगा मां आज भी उतनी ही सामर्थ रखती हैं जितना युगों युगों से रखती आई है । गंगा माँ तो मनुष्य के पापों को हरने वाली है ।
जय मां गंगे ।।